पूर्णिया में लिखी गयी थी एवरेस्ट विजय की पटकथा

कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु और साहित्यकार सतीनाथ भादुरी की धरती पूर्णिया ने अपने दामन में इतिहास के कई ऐसे राज छुपा रखे हैं जिन्हें जान कर आप गौरवान्वित और अचंभित हो उठेंगे। आपको ये जानकर जरूर हैरानी होगी कि हिमालय की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट के विजय का ताना बाना यहीं बुना गया था। जी हां आपने बिल्कुल ठीक पढ़ा है। एवरेस्ट पर चढ़ाई के अभियान की नीव बिहार में रखी गयी थी तथा इसकी रूप रेखा जिले के चंपानगर में तैयार हुई थी और यहीं से एवरेस्ट के आरोहण के रास्ते को तलाशने की कवायद शुरू हुई थी। दरअसल, 3 अप्रैल 1933 की सुबह 8:25 मिनट पर ह्यूस्टन वेस्टलैंड विमान में सवार हो पांच सदस्यीय टीम ने  एवरेस्ट अभियान के तहत हिमालय की तस्वीरें लेने के लिए उड़ान भरी। उड़ान के लिए लालबलु में हवाई पट्टी का निर्माण कराया गया और आपात लैंडिंग के लिए अररिया के फारबिसगंज में इमरजेंसी लैंडिंग हैलीपैड बनवाया गया था। विमान लेफ्टिनेट मैनेकेन्ट्री उड़ा रहे थे जबकि टीम में मौसम विद के तौरपर एस. एन. गुप्ता मौजूद थे। जानकारों की माने तो एवरेस्ट की फोटोग्राफी का जिम्मा  एस. आर. बोनेट को सौंपा गया था। इन तीनों के अलावा अभियान में कर्नल ब्लैक एवं लॉर्ड क्लाडसडेल शामिल थे। विमान ने लालबालू से 342 डिग्री के कोण पर उड़ान भरते हुए फारबिसगंज, कोमलतार और चामलाग के ऊपर से 33000 फ़ीट की ऊंचाई पर एवरेस्ट का चक्कर लगया तथा चोटी की तस्वीरें ली। इसके बाद ही 29 मई 1953 को एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे ने एवरेस्ट पर पहली बार चढ़ने में कामयाबी हासिल की।
 *एसपी निशांत कुमार तिवारी ने भी की पुष्टि*
इतिहास जानने और लेखन के क्षेत्र में पूर्णिया एसपी निशांत कुमार की अभिरुचि किसी से छुपी नहीं है। उन्होंने भी ब्रिटेन से छपने वाले एक अखबार में प्रकाशित खबर का हवाला देते हुए इसकी पुष्टि की है और कहा है कि जिले के बनैली राज घराने के लोगों और कुछ अंग्रेजों ने इसकी शुरुआत की थी और एवरेस्ट की तस्वीरें ली थी।

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कोरी आलोचना (पीयू शताब्दी समारोह)